Saturday, August 5, 2017

Vishnu Purana - Review

Vishnu Purana (Great Epics of India: Puranas Book 3)

Translated by Bibek Debroy
This is the seventh Purana that I am reviewing. The name of the Purana is obvious since the title says, “Vishnu Purana”. The Vishnu Purana is third in the list of Mahapuranas and is an important Purana. I decided to do the Vishnu Purana because it was a satvik purana, a purana that glorifies Vishnu. If you go to my blog you will see that recently I have written three continuous tamsik puranas, puranas that glorify Shiva, so this time I decided to have a break and switch to another type of Purana. Well here I am writing a satvik purana’s review. There are five other satvik Puranas. They are:
  1. Bhagavata Purana
  2. Padma Purana {reviewed this one}
  3. Narada Purana
  4. Varaha Purana
  5. Garuda Purana
This Purana has twenty-three thousand shlokas and these are divided into six sections. The last section is shorter than the rest. The Vishnu Purana is a medium sized Purana. As you must have read in my Shiva Purana review I have said that Vedavyasa has composed all the eighteen Mahapuranas. Well, when I read the Vishnu Purana I found that was not completely true. Vedavyasa had composed most of the Puranas except the Vishnu Purana. The Vishnu Purana was composed by Parashara, Vedavyasa’s father. Well I think this much introduction is enough. If you want a bit more information on what is a Purana read my first Purana review, the Shiva Purana Read its first and second paragraphs for information. Let us move on.

The day I fell into cow dung - Hindi


जिस दिन मैं गोबर मे गिरी 

एक सड़ती शाम मै 5th Cross Road पर चल रही थी | तभी मुझे एक बहुत गंदी बदबू आयी | जब मैने नज़र उठाके अपने आगे - पीछे देखा , मेरी नज़र एक गोबर के ढेर पर पड़ी | वही बदबू  का कारण था और गोबर का कारण एक भैंस थी जो मेरे  बहुत पास खड़ी थी| दुर्भाग्यवश तभी एक आदमी जिसका ध्यान पूरी तरह एक किताब में था एक दुकान से बहार निकला | वह किताब पढ़ते -पढ़ते जा रहा था और उसने अपना पैर सीधा गोबर के ढेर मे डाल दिया | आदमी आश्चर्यचकित नीचे देखता है |

सीधा दो क्षण के बाद मुझे एक इतनी ज़ोर से चीख आई की दरवाज़े और खिड़खियाँ खड़-खड़खड़ाने लगे | उस चीख का स्रोत वही दुर्भाग्यशाली आदमी ही था | वह आदमी चीखता और भागता हुआ नज़र आ रहा था | उस आदमी की किताब भी गोबर मे गिर गयी थी | मुझे पक्का लग रहा था कि अगर किताब बोल सकती तो वह भी चीख़ती हुई नज़र आती |

तभी मुझे शोरगुल सुनाई दिया | पूछने पर मुझे पता चला कि पास मे Bannerghatta zoo से एक हाथी भाग निकल पड़ा था और 5th Cross Road कि तरफ़ आ रहा था | जब मैन पीछे मुड़कर देखा तो मैंने देखा कि हाथी सीधा मेरे  तरफ़ ही आ रहा था |  इसे पहले कि मैं भाग सकती मैं लड़खड़ाकर मुँह के बल गोबर के ढेर मे गिर गई | मै इतनी ज़ोर से चीखी कि पक्षी भी उड़ गए | मुझे यकीन नही आ रहा था कि मैं गोबर मे गिर गयी थी | मैं फिर जल्दी से उठकर सबसे पास वाले नल पर गयी और अपना मुँह धो लिया | मैं फिर अपना थैला उठाने गई जो गिर गया था जब मैं गिर गयी थी | जब मैं जा रही थी मैंने फिर से उसी गोबर के ढेर मै अपना पैर रख दिया| पर मुझे यह घर जाने पर ही पता चला | घर पहुँचने पर  मैने एक और चीख निकाली | मै बहुत दुर्भाग्यशाली थी | उस दिन के बाद मैं कभी 5th Cross Road पर कभी नहीं गई और मैं भैंस और गोबर से बहुत नफरत करती हूँ | 


 The End 

© 2017, अनिका अग्रवाल Anika Agarwal