जिस दिन मैं गोबर मे गिरी
एक सड़ती शाम मै 5th Cross Road पर चल रही थी | तभी मुझे एक बहुत गंदी बदबू आयी | जब मैने नज़र उठाके अपने आगे - पीछे देखा , मेरी नज़र एक गोबर के ढेर पर पड़ी | वही बदबू का कारण था और गोबर का कारण एक भैंस थी जो मेरे बहुत पास खड़ी थी| दुर्भाग्यवश तभी एक आदमी जिसका ध्यान पूरी तरह एक किताब में था एक दुकान से बहार निकला | वह किताब पढ़ते -पढ़ते जा रहा था और उसने अपना पैर सीधा गोबर के ढेर मे डाल दिया | आदमी आश्चर्यचकित नीचे देखता है |
सीधा दो क्षण के बाद मुझे एक इतनी ज़ोर से चीख आई की दरवाज़े और खिड़खियाँ खड़-खड़खड़ाने लगे | उस चीख का स्रोत वही दुर्भाग्यशाली आदमी ही था | वह आदमी चीखता और भागता हुआ नज़र आ रहा था | उस आदमी की किताब भी गोबर मे गिर गयी थी | मुझे पक्का लग रहा था कि अगर किताब बोल सकती तो वह भी चीख़ती हुई नज़र आती |
तभी मुझे शोरगुल सुनाई दिया | पूछने पर मुझे पता चला कि पास मे Bannerghatta zoo से एक हाथी भाग निकल पड़ा था और 5th Cross Road कि तरफ़ आ रहा था | जब मैन पीछे मुड़कर देखा तो मैंने देखा कि हाथी सीधा मेरे तरफ़ ही आ रहा था | इसे पहले कि मैं भाग सकती मैं लड़खड़ाकर मुँह के बल गोबर के ढेर मे गिर गई | मै इतनी ज़ोर से चीखी कि पक्षी भी उड़ गए | मुझे यकीन नही आ रहा था कि मैं गोबर मे गिर गयी थी | मैं फिर जल्दी से उठकर सबसे पास वाले नल पर गयी और अपना मुँह धो लिया | मैं फिर अपना थैला उठाने गई जो गिर गया था जब मैं गिर गयी थी | जब मैं जा रही थी मैंने फिर से उसी गोबर के ढेर मै अपना पैर रख दिया| पर मुझे यह घर जाने पर ही पता चला | घर पहुँचने पर मैने एक और चीख निकाली | मै बहुत दुर्भाग्यशाली थी | उस दिन के बाद मैं कभी 5th Cross Road पर कभी नहीं गई और मैं भैंस और गोबर से बहुत नफरत करती हूँ |
सीधा दो क्षण के बाद मुझे एक इतनी ज़ोर से चीख आई की दरवाज़े और खिड़खियाँ खड़-खड़खड़ाने लगे | उस चीख का स्रोत वही दुर्भाग्यशाली आदमी ही था | वह आदमी चीखता और भागता हुआ नज़र आ रहा था | उस आदमी की किताब भी गोबर मे गिर गयी थी | मुझे पक्का लग रहा था कि अगर किताब बोल सकती तो वह भी चीख़ती हुई नज़र आती |
तभी मुझे शोरगुल सुनाई दिया | पूछने पर मुझे पता चला कि पास मे Bannerghatta zoo से एक हाथी भाग निकल पड़ा था और 5th Cross Road कि तरफ़ आ रहा था | जब मैन पीछे मुड़कर देखा तो मैंने देखा कि हाथी सीधा मेरे तरफ़ ही आ रहा था | इसे पहले कि मैं भाग सकती मैं लड़खड़ाकर मुँह के बल गोबर के ढेर मे गिर गई | मै इतनी ज़ोर से चीखी कि पक्षी भी उड़ गए | मुझे यकीन नही आ रहा था कि मैं गोबर मे गिर गयी थी | मैं फिर जल्दी से उठकर सबसे पास वाले नल पर गयी और अपना मुँह धो लिया | मैं फिर अपना थैला उठाने गई जो गिर गया था जब मैं गिर गयी थी | जब मैं जा रही थी मैंने फिर से उसी गोबर के ढेर मै अपना पैर रख दिया| पर मुझे यह घर जाने पर ही पता चला | घर पहुँचने पर मैने एक और चीख निकाली | मै बहुत दुर्भाग्यशाली थी | उस दिन के बाद मैं कभी 5th Cross Road पर कभी नहीं गई और मैं भैंस और गोबर से बहुत नफरत करती हूँ |
The End
© 2017, अनिका अग्रवाल Anika Agarwal
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